1 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है नया साल?

New Year on 1 January

दुनिया के अधिकतर देशों में नए साल की शुरुआत 1 जनवरी से होती है। (तस्वीर साभार: istock)

Why 1st January celebrated as New Year Day: 1 जनवरी से ही नए साल की शुरुआत क्यों होती है? हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था। वास्तव में कई सदियों तक कैलेंडर की अन्य तारीखों जैसे-25 मार्च और 25 दिसंबर से भी नए साल की शुरुआत होती थी। तो 1 जनवरी नए साल का पहला दिन कैसे बन गया?

1 जनवरी से नए साल मनाने की शुरुआत का श्रेय रोमन लोगों को जाता है। रोमन राजा जूलियस सीजर ने 45 ईसा पूर्व में 1 जनवरी को नए साल को मनाने की शुरुआत की थी।

कैसे हुई 1 जनवरी को नया साल मनाने की शुरुआत? (Why does the new year start on January 1)

ब्रिटैनिका के मुताबिक, रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन था। रोमन राजा नूमा पोंपिलस ने अपने शासनकाल (715-673 ईसा पूर्व) में रोमन रिपब्लिकन कैलेंडर को बदलाव करते हुए नया कैलेंडर अपनाया था। यह कैलेंडर पृथ्वी और सूर्य की गणना पर आधारित था। उस कैलेंडर में एक सप्तार में 8 दिन और साल में 310 दिन होते थे।

नूमा ने मार्च की जगह जनवरी को पहला महीना बनाया। इसकी वजह ये थी कि जनवरी का नाम जानूस (Janus) से लिया गया, जोकि ‘सभी शुरुआत के रोमन देवता’ थे। मार्च का नाम मार्स पर पड़ा, जिन्हें ‘युद्ध का देवता’ माना जाता है।

ऐसे में कुछ लोगों का मानना है कि नूमा ने ही मार्च की जगह जनवरी महीने को साल का पहला महीना चुना था) हालांकि इस बात के प्रमाण हैं कि 153 ईसा पूर्व तक 1 जनवरी को आधिकारिक तौर पर रोमन साल की शुरुआत का दिन नहीं माना गया था।

DW वर्ल्ड के अनुसार, 46 ईसा पूर्व में रोमन सम्राट ने जूलियस सीजर ने नई गणनाओं के साथ रोमन कैलेंडर में कई बदलाव करते हुए जूलियन कैलेंडर नाम से एक नया कैलेंडर जारी किया। जूलियन कैलेंडर में 12 महाने थे।

खगोलविदों से मिली जानकारी के अनुसार जब सीजर को ये पता चला कि पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365 दिन और 6 घंटे का समय लगता है तो उन्होंने जूलियन कैलेंडर को 310 दिन से बढ़ाकर 365 दिन कर दिया। साथ ही सीजर ने हर चार साल बाद फरवरी को 28 से बढ़ाकर 29 दिन का कर दिया, जिससे हर चार साल में एक दिन बढ़ने वाले दिन यानी लीप ईयर की समस्या भी खत्म हो गई।

जूलियस सीजर ने की थी 1 जनवरी से नए साल मनाने की शुरुआत

माना जाता है कि 45 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर ने नए साल की शुरुआत का पहला दिन 1 जनवरी से रखने की शुरुआत की थी। दुनिया में रोमन साम्राज्य के विस्तार के साथ ही जूलियन कैलेंडर का भी विस्तार हुआ।

हालांकि 5वीं शताब्दी में रोम साम्राज्य के पतन के साथ ही कई ईसाई देशों ने जूलियन कैलेंडर में बदलाव करते हुए अपने धर्म का ज्यादा प्रतिनिधित्व करने वाले कैलेंडर को अपनाया। इसका नतीजा ये हुआ कि कुछ ईसाई देशों में 25 मार्च (उद्घोषणा (Annunciation) का पर्व) और 25 दिसंबर (क्रिसमस) को नया साल मनाया जाने लगा।

ईसाई धर्म में 25 मार्च और 25 दिसंबर दोनों ही दिन विशेष हैं। ईसाई मान्यताओं के अनुसार 25 मार्च को एक विशेष दूत गैबरियल ने ईसा मसीह की मां मेरी को संदेश दिया था कि उन्हें ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह को जन्म देना है। 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था। इसलिए ईसाई लोग इन दो तारीखों में से किसी दिन नया साल मनाना चाहते थे।

ब्रिटैनिका के अनुसार, बाद में ये स्पष्ट हो गया कि लीप ईयर को लेकर गलत गणना की वजह से जूलियन कैलेंडर में कुछ सुधार की जरूरत थी। इस गलती की वजह से कई सदियों के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाओं की तारीख गलत सीजन में पड़ गई। साथ ही इससे ईस्टर की तारीख को भी तय करने में समस्या आई। इसलिए पोप ग्रेगोरी XIII ने 1582 में एक संसोधित कैलेंडर पेश किया।

दरअसल, जूलियन कैलेंडर के हिसाब से एक साल में 365 दिन 6 घंटे बताए गए थे जबकि बाद में हुई गणना से पता चला कि साल में 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट और 46 सेकेंड होते हैं। इस गणना के हिसाब से हर साल 11 मिनट 14 सेकेंड ज्यादा गिने जा रहे थे।

इसका नतीजा ये हुआ कि 400 सालों में समय 3 दिन पीछे हो रहा था। ऐसे में 16वीं सदी तक समय करीब 10 दिन पीछे हो चुका था। इससे निपटने के लिए 1582 में पोप ग्रेगरी और ज्योतिषी एलाय सियस लिलियस ने अक्टूबर में समय सीधा 10 दिन बढ़ाकर 5 अक्टूबर से सीधे 15 अक्टूबर कर दिया था।

लीप ईयर की समस्या को सुलझाने के साथ ही ग्रेगोरियन कैलेंडर ने 1 जनवरी को ही नए साल की शुरुआत का दिन बनाए रखा, जिससे 1 जनवरी से ही नया साल मनाया जाने लहा। इटली, फ्रांस और स्पेन जैसे देशों ने तुरंत यानी 1582 में ही इस कैलेंडर को अपना लिया, जबकि प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स देश इसे अपनाने में धीमे थे।

उदाहरण के लिए जर्मनी के कैथोलिक राज्यों, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड ने 1583, पोलैंड ने 1586, हंगरी ने 1587, जर्मनी और नीदरलैंड के प्रोटेस्टेंट प्रदेशों और डेनमार्क ने 1700 में ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया।

भारत ने कब अपनाया था अंग्रेजी कैलेंडर?

ग्रेट ब्रिटेन और उसकी अमेरिकी कॉलोनीज ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को 1752 तक नहीं अपनाया था। इससे पहले ये देश नया साल 25 मार्च को मनाते थे। 1752 में भारत पर ब्रिटेन का कब्जा था, ऐसे में भारत में भी ग्रेगोरियन या अंग्रेजी कैलेंडर 1752 में ही लागू हो गया था।

समय बीतने के साथ गैर-ईसाई देश भी ग्रेगोरियन कैलेंडर का इस्तेमाल करने लगे। चीन ने इसे 1912 में अपनाया। रूस ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को 1917 और जापान ने 1972 में अपनाया। वास्तव में कई देश जो ग्रेगोरियन कैलेंडर को फॉलो करते हैं, उनके अपने भी पारंपरिक या धार्मिक कैलेंडर भी हैं।

कुछ देशों ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को कभी नहीं अपनाया और वे साल की शुरुआत 1 जनवरी से नहीं करते। उदाहरण के लिए इथोपिया, जहां नया साल (एन्कुताताश) सितंबर में मनाया जाता है। वहीं चीन अपने लूनर कैलेंडर के हिसाब से चाइनीज न्यू ईयर भी मनाता है।

भारत में अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 1 जनवरी को नया साल मनाने के साथ ही विक्रमी संवत या हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने की पहली तारीख यानि चैत्र प्रतिपदा को भी नया साल मनाया जाता है।

साथ ही भारत में लगभग हर राज्य अपनी परंपरा के हिसाब से भी नया साल मनाता है। मराठी लोग गुडी पड़वा के दिन तो गुजराती दीवाली पर नया साल मनाते हैं। ये अक्सर मार्च के अंत या अप्रैल में पड़ता है।

ग्रेगोरियन या अंग्रेजी कैलेंडर में भी है एक खामी

ऐसा नहीं है कि वर्तमान में सबसे ज्यादा प्रचलित कैलेंडर ग्रेगोरियन या अंग्रेजी कैलेंडर एकदम परफेक्ट है, बल्कि इसके साथ भी एक समस्या है। इस कैलेंडर में हर साल अतिरिक्त रहने वाले 14 सेकेंड का अंतर अब भी बरकरार है।

इसी के चलते अब से करीब 2952 साल बाद यानी सन 5000 ईस्वी आते-आते कैलेंडर में एक दिन का अंतर पैदा हो जाएगा। संभव है कि तब इस कैलेंडर में बदलाव करके कोई नया कैलेंडर बनाया जाए, लेकिन तब तक तो 1 जनवरी को ही नए साल का जश्न मनाया जाता रहेगा।

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